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KHARGOSH KI KAHANI

बहुत समय पहले की बात है, सुंदरवन में श्वेतू नामक एक बूढ़ा खरगोश रहता था। वह इतनी अच्छी कविता लिखता था कि सारे जंगल के पशु्पक्षी उन्हें सुनकर दातों तले उँगली दबा लेते और विद्वान तोता तक उनका लोहा मानता था।

श्वेतू खरगोश ने शास्त्रार्थ में सुरीली कोयल और विद्वान मैना तक को हरा कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारण जंगल का राजा शेर भी उसका आदर करता था।


पूरे दरबार में उस जैसा विद्वान कोई दूसरा न था। धीरे-धीरे उसे अपनी विद्वत्ता का बड़ा घमण्ड हो गया।


एक दिन वह बड़े सवेरे खाने की तलाश में निकला। बरसात के दिन थे, काले बादलों ने घिरना शुरू ही किया था। मौसम की पहली बरसात होने ही वाली थी। सड़क के किनारे जामुनों के पेड़ काले-काले जामुनों से भरे झुके हुए थे। बड़े-बड़े, काले, रसीले जामुनों को देखकर श्वेतू के मुँह में पानी भर आया।

एक बड़े से जामुन के पेड़ के नीचे जाकर उसने आँखें उठाई और ऊपर देखा तो नन्हें तोतों का एक झुण्ड जामुन खाता दिखाई दिया। बूढ़े खरगोश ने नीचे से आवाज़ दी, "प्यारे नातियों मेरे लिये भी थोड़े से जामुन गिरा दो।"

उन नन्हें तोतों मे मिठ्ठू नाम का एक तोता बड़ा शरारती और चंचल था। वह ऊपर से ही बोला, 'दादा जी, यह तो बताइये कि आम गरम जामुन खायेंगे या ठंडी?"

बेचारा बूढ़ा श्वेतू खरगोश हैरान होकर बोला, "भला जामुन भी कहीं गरम होते हैं? चलो मुझसे मज़ाक न करो। मुझे थोड़े से जामुन तोड़ दो।"

मिठ्ठू बोला, "अरे दादाजी, आप ठहरे इतने बड़े विद्वान। यह भी नहीं जानते कि जामुन गरम भी होते हैं और ठंडे भी। पहले आप बताइये कि आपको कैसे जामुन चाहिये? भला इसे जाने बिना मैं आपको कैसे जामुन दूँगा?"

बूढ़े और विद्वान खरगोश की समझ में बिलकुल भी न आया कि जामुन गरम भला कैसे होंगे? फिर भी वह उस रहस्य को जानना चाहता था इसलिये बोला, "बेटा, तुम मुझे गरम जामुन ही खिलाओ ठंडे तो मैंने बहुत खाए हैं।"

नन्हें मिठ्ठू ने बूढ़े श्वेतू की यह बात सुनकर जामुन की एक डाली को ज़ोर से हिलाया। पके-पके ढेर से जामुन नीचे धूल में बिछ गये। बूढ़ा श्वेतू उन्हें उठाकर धूल फूँक-फूँक कर खाने लगा। यह देखकर नन्हें मिठ्ठू ने पूछा, "क्यों दादाजी, जामुन खूब गरम हैं न?"

"कहाँ बेटा? ये तो साधारण ठंडे जामुन ही हैं।" खरगोश बोला। नन्हें मिठ्ठू तोते ने चौंक कर पूछा, "क्या कहा ठंडे हैं? तो फिर आप इन्हें फूँक-फूँक कर क्यों खा रहे हैं? इस तरह तो सिर्फ गरम चीजें ही खाई जाती है।"

नन्हें मिठ्ठू तोते की बात का रहस्य अब जाकर बूढ़े खरगोश की समझ में आया और वह बड़ा शर्मिन्दा हुआ। इतना विद्वान बूढ़ा श्वेतू खरगोश जरा सी बात में छोटे से तोते के बच्चे से हार गया था। उसका घमण्ड दूर हो गया और उसने एक कविता लिखी -
खूब कड़ा तना शीशम का, बड़े कुल्हाड़े से कट जाता।
लेकिन वो ही बड़ा कुल्हाड़ा, कोमल केले से घिस जाता।
सच है कभी-कभी छोटे भी, ऐसी बड़ी बात कहते हैं।
बहुत बड़े विद्वान गुणी भी, अपना सिर धुनने लगते हैं।
 
KHARGOSH KI KAHANI KHARGOSH KI KAHANI Reviewed by Himanshu Saini on 3:15 AM Rating: 5

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